राज्य में वनस्पति एवं जैविक संपदा को बनाग्नि से तकरीबन 1,978 हेक्टेयर वन क्षेत्र का नुकसान होता है और वह जल कर स्वाहा हो जाते हैं | जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है | वहीँ हर साल प्रदेश के जंगलों में आग की घटनाये बढती ही जा रही है | भले ही विभागों द्वारा पारम्परिक तरीके ही अपनाये जा रहे हैं लेकिन समय के साथ साथ तकनिकी का भी प्रयोग किया जाने लगा है लेकिन फिर भी यह नाकाफी है |
जहाँ एक और विभागों द्वारा अपनी और से वनाग्नि रोकने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो में लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है | बेजुबान जानवरों और पर्यावरण के प्रति हमें अपनी जवाबदेही क्या नहीं रखनी होगी वो भी बढ़ी ईमानदारी के साथ |
12 वर्षों में उत्तराखंड के जंगलों में आग की लगभग 14,174 घटनाएं हुई हैं |
हमेशा ही उत्तराखंड में बनने वाली सरकारे बहुत सी घोषनाएं करती है और बहुत से जीओं निकालते है किन्तु हर साल धधकने वाली वनाग्नि की समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये जाते हैं | 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले प्रदेश में हर साल औसतन 1,978 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से सुलगता है | वहीँ पिछले 12 वर्षों में उत्तराखंड के जंगलों में आग की लगभग 14,174 घटनाएं हुई हैं |
भले ही इस वर्ष उत्तराखंड में बरसात के मौसम में अधिक बारिश हुई है तथा पहाड़ों की जमीन में नमी समाई है और चाल-खाल में भी आगे तक पानी रहने वाला है लेकिन जनवरी फरवरी में होनी वाली बारिश और बर्फ़बारी इस बार कम देखने को मिली है जिस कारण ऊंची चोटियों पर बर्फ कम जमी है | जिस कारण इस बार वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जहाँ एक और दावानल से जैविक संपदा और वनस्पति का नुकसान तो होता ही है साथ ही हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरण भी बुरी तरह प्रभावित होता है |
भले ही नई तकनीकी का इस्तेमाल करना शुरू हो चूका है और सूचना प्रसार के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है | सिर्फ इतने से ही बात नहीं बनेगी इसके लिए जवाबदेह व्यवस्था विकसित करने की जरुरत है | जिससे जंगलों में आग लगाने वालों को दंडित किए जा सके |
अगर हम अपनी जवाबदेही से मुहं मोड़ते रहे तो फिर सिर्फ एक ही तरीका है वो है डंडे के बल पर कार्य करवाना | `
जहाँ एक और वनाग्नि को रोकने के लिए तेजी से नई तकनीक का इस्तमाल करना होगा, वहीँ वन पंचायतों, ग्राम प्रधानों, सहित सभी को जवाबदेही देने की सख्त जरुरत है | साथ ही कठोर से कठोर दण्डात्मक कार्यवाही किये जाने की भी जरुरत है | यदि बात की जाय दण्ड दिए जाने की तो जंगलों में आग लगाने वालों को पिछले कुछ वर्षो में दंडित किया गया हो ऐंसे उदाहरण कम मिलते हैं और वन माफिया एंवं अपराधी निडर हो कर यह सब करते रहते हैं।
वनाग्नि से छोटे पौधों एवं बहुमूल्य वनस्पतियों को इससे काफी नुकसान होता है | जिससे जैव विविधता के लिए भी खतरा बना रहता है | साथ ही इस सीजन में पक्षियों, जंगली जानवरों के बच्चो की जन्म होता है या होने वाला होता है | जिससे आने वाली पीढ़ी के लुप्त होने का खतरा भी बना हुआ है |
इसलिए प्रशासन और शासन को जल्द से जल्द नई तकनीक को लाना होगा तथा इसके लिए ठोस प्रयास करने होंगे | वहीँ सभी को वनाग्नि को रोकने के लिए अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी तथा वनों की आग लगाने वालो के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने को लेकर एकजुट होना होगा |
जब तक हर एक व्यक्ति अपनी जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करेगा और वनाग्नि रोकने में अपना सम्पूर्ण योगदान नहीं करेंगे तथा वनों में आग लगाने वालों के खिलाफ जब तक समाज आगे नहीं आएगा और उनका बहिष्कार नहीं करेगा तब तक इस प्रकार की घटनाये घटित होती रहेगी |