Supreme Court ने बुधवार को फैसला सुनाया कि एक तलाकशुदा Muslim महिला अपने पूर्व पति के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा दायर कर सकती है।
अब Muslim महिला धारा 125 दावा दायर कर सकते हे
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर Muslim महिला का CRPC की धारा 125 के तहत आवेदन लंबित है तो वह तलाक ले लेती है तो वह Muslim महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत दावा दायर कर सकती है।
शाह बानो मामले में एक ऐतिहासिक फैसले में Supreme Court ने निर्धारित किया कि सीआरपीसी की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है जो मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है।
हालाँकि इसे मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा रद्द कर दिया गया था और कानून की वैधता को 2001 में बरकरार रखा गया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में प्रतिवादी, एक मुस्लिम महिला, जो तलाक लेने से पहले याचिकाकर्ता की पत्नी थी, द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दावा याचिका दायर करने पर शिकायत उठाई गई है।
यह मामला फैमिली कोर्ट के एक आदेश से उठा, जिसमें याचिकाकर्ता को प्रति माह ₹20,000 का अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
इसे उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जोड़े ने 2017 में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था।
उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता को संशोधित कर ₹10,000 प्रति माह कर दिया और पारिवारिक अदालत को छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया।
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