Mythological : आज भी जिंदा है पांडव नृत्य की पौराणिक परंपराएं

आज भी जिंदा है पांडव नृत्य की पौराणिक परंपराएं

आज के दौर में पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ते रुझान के चलते, हम अपनी पौराणिक, धार्मिक सभ्यताओं को भूलते चले जा रहे हैं, मगर आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां के लोग,अपनी पौराणिक, धार्मिक सभ्यताओं को जिंदा रखे हुए हैं |

ऐसा ही एक क्षेत्र है, विकासखंड नरेंद्रनगर की पट्टी क्वीली में स्थित मणगांव न्याय पंचायत, जहां के सात गांव मिलकर पोखरी में हर चौथे साल पांडव नृत्य महायज्ञ का नौ दिनों व 9 रात्रियों तक सामूहिक रूप से आयोजन करते हैं

क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि, इस परंपरा का निर्वहन पिछले 600 वर्षों से होता चला आ रहा है |

इस क्षेत्र के नौकरी पेशा वाले अथवा बहुत दूर व्याही महिलाएं ,अपने मायका आकर, इस महायज्ञ में शामिल होने पांडव नृत्य स्थल पोखरी पहुंचते हैं |

रात्री को जागर मंडाण व ढोल दमाऊ की थाप पर माता कुंती व पांडव अपने-अपने पश्वाओं पर अवतरित होकर प्रसन्नता के साथ नाचते हैं |

क्षेत्र के लोग माता कुंती व देवी- देवताओं से आशीर्वाद लेते हैं | क्षेत्र में दिन को पांडव यात्रा निकाली गयी , जिसका क्षेत्रवासी फूल मालाओं के साथ जगह-जगह स्वागत अभिनंदन करते हैं

क्षेत्र वासियों का कहना है कि यह परंपरा हमारी पौराणिक धरोहर,सभ्यता व संस्कृति है, इन परंपराओं से आने वाली पीढ़ी भी अपनी पौराणिक संस्कृति के बारे में समझती और जानती है |

इसे अक्षुण्ण बनाए रखना हम सब का कर्तव्य है, जब ये परंपराएं जीवंत रहेगी, तभी हम सनातनी कहलाएंगे और उत्तराखंड देवभूमि कहे जाने की लोकोक्ति परिलक्षित होती दिखाई देती है |

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