कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा: एक ज्वलंत मुद्दा

एम्स ऋषिकेश में एक महिला चिकित्सक के साथ नर्सिंग अधिकारी द्वारा छेड़खानी और उत्तराखंड में अंकिता भंडारी की हत्या की घटना ने एक बार फिर कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा के मुद्दे को उजागर कर दिया है। यह घटनाएं न केवल महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और उत्पीड़न का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति मानसिकता कितनी भयावह है।

ऋषिकेश उत्तम सिंह

कार्यस्थल महिलाओं के लिए केवल आजीविका कमाने का स्थान नहीं है, बल्कि यह सम्मान और गरिमा के साथ योगदान करने का भी स्थान है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अवसर और सुरक्षा मिलनी चाहिए, ताकि वे अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सकें।

लेकिन, वास्तविकता इससे काफी दूर है। महिलाओं को अक्सर भेदभाव, उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है। एम्स ऋषिकेश की घटना इसका ताजा उदाहरण है। जहाँ एक महिला चिकित्सक को नर्सिंग अधिकारी द्वारा ऑपरेशन थिएटर में छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ा। अंकिता भंडारी की हत्या की घटना भी इसी दर्दनाक सच को उजागर करती है।

यह घटनाएं समाज और सरकार के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं। क्या हम महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस करा पा रहे हैं?

इसका जवाब नहीं है। हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। सरकार को कानूनों को मजबूत करना होगा और कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े प्रावधान लाने होंगे। संस्थानों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ कड़ाई से नीतियां लागू करनी होंगी और महिलाओं को जागरूक करना होगा।

हमें सभी को मिलकर महिलाओं के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। यह केवल महिलाओं का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है।
आइए हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहां महिलाएं निडर होकर अपने सपनों को पूरा कर सकें।

(इस लेख के लेखक अंकित तिवारी,शोधार्थी,अधिवक्ता एवं पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि हैं।)

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